शक्ति की पूजा है कन्या पूजन

kanya poojan

नवरात्र की अष्टमी और नवमी तिथि को कन्याओं के पूजन की परंपरा है । इस दिन 2 से 10 साल की कन्याओं को भोजन कराने, वस्त्र आदि देने की परंपरा है । कन्या पूजन शक्ति पूजन का भी एक रूप है

नवरात्र में पूजन व व्रत के साथ-साथ कुमारी कन्या के पूजन का विशेष महत्व है । ऐसा माना जाता है कि यदि भक्त कुमारी कन्या का पूजन नहीं करते, तो नवरात्र व्रत और पूजन का फल प्राप्त नहीं होता है । नवरात्र की अष्टमी और नवमी तिथि के दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व है । भारत में नवरात्र के दौरान अष्टमी और नवमी तिथि को कन्या पूजन किया जाता है । मां दुर्गा शक्ति का साक्षात रूप है और वे कुमारी रूप में शत्रुओं का संहार करती हैं । इसलिए कन्याओं को भी मां दुर्गा का ही अंश माना जाता है । यही कारण है कि मां दुर्गा की सेवा के प्रतीक स्वरूप नवरात्र में व्रत करने वाले या सामान्य पूजा आराधना करने वाले भी कन्या पूजन अवश्य करते हैं । कन्या पूजन से तात्पर्य है विविध आराधना और सेवा आदि कर्म से कन्या का सम्मान करना । रोली व चावल आदि विविध पूजन सामग्री से कन्याओं का पूजन मां की पूजा की तरह ही करें । कन्या पूजन करने से मां शक्ति प्रसन्न होती हैं । तथा लक्ष्मी, विद्या, सम्मान, वैभव आदि की प्राप्ति होती है । कहा जाता है कि कन्या पूजन करने वाले व्यक्ति के हृदय से भय जाता रहता है । उसके मार्ग में आने वाले सभी विघ्न समाप्त होते हैं । उस पर कोई संकट नहीं आता क्योंकि उस पर मां दुर्गा की कृपा बरसती रहती है ।

नवरात्र में कन्या पूजन के लिए ऐसे करें कन्याओं का चयन व कन्या पूजन विधि

 
नवरात्र में कन्या पूजन के लिए जिन कन्याओं का चयन करें, उनकी आयु 2 वर्ष से 10 वर्ष के बीच होनी चाहिए । 1 वर्ष या उससे छोटी आयु की कन्याओ को पूजन में बैठाना नहीं चाहिए क्योंकि वे भोग अदि ग्रहण नहीं कर पाती हैं ना ही उन्हें भोग आदि के स्वाद का पता होता है । इसलिए 2 से 10 वर्ष की कन्या को पूजना ही श्रेष्ठ और शास्त्रानुसार होता है । इस दिन कन्याओं को भोजन कराना, उनके पैर पखारना, वस्त्र आदि देने का विधान है । मां का नित्य पूजन कर दुर्गा सप्तशती का पाठ करें । “ॐ ह्रीं दूं दुर्गायै नमः” मंत्र की 1 या 5 अथवा 11 माला का जप का दशांश हवन करें । इन दिनों सात्विक भोजन करें । व्रत में फलाहार करें, जो कुछ भी ग्रहण करें उसका भोग देवी मां को भी लगाएं । नवरात्र के दौरान आवश्यक नियमों का पालन करना श्रेयस्कर है ।

कन्याओं के विविध रूप

 
2 वर्ष की कन्या को कुमारी कहा जाता है । इसके पूजन से दुख और दरिद्रता दूर होती है ।

3 वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति मानी जाती है । त्रिमूर्ति के पूजन से धन-धान्य आता है व परिवार का कल्याण होता है ।

4 वर्ष की कन्या कल्याणी होती है । इनकी पूजा सुख-समृद्धि दिलाती है ।

5 वर्ष की कन्या रोहिणी कहीं जाती है । रोहिणी के पूजन से व्यक्ति रोगमुक्त होता है ।

6 वर्ष की कन्या कालिका की अर्चना में विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है ।

7 वर्ष की कन्या चंडिका के पूजन से ऐश्वर्य मिलता है ।

8 वर्ष की कन्या शांभवी वाद विवाद मैं विजय दिलाती है । और प्रसिद्ध दिलाती है ।

9 वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती है और शत्रु संहार तथा असाध्य कार्य सिद्धि देती है ।

10 वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है । यह भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करती हैं ।

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